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डाकखाता घोटाला: तीन हजार खातों की हो रही जांच, छह डाककर्मी जांच के दायरे में

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गोरखपुर जिले के डाकघर में बंद पड़े खातों को सक्रिय कर 50 लाख रुपये से अधिक के हेरफेर मामले में जांच का दायरा बढ़ गया है। फिलहाल, तीन हजार खातों की जांच हो रही है। ये सभी खाते शहरी क्षेत्र के पांच से अधिक डाकघर में संचालित होते थे।

जांच टीम के रडार पर छह डाककर्मी भी हैं। आशंका जताई जा रही है कि ये सब भी इस हेरफेर में शामिल रहे हैं या अपने स्तर से वित्तीय अनियमितता की है। उधर, आरोपी बनाए गए दोनों डाक कर्मियों ने तीन लाख रुपये और जमा करवाए हैं। मामला सामने आने पर बीते शुक्रवार को दोनों आरोपी डाक कर्मियों ने 40 लाख रुपये पहले ही जमा करवा दिया था।

दरअसल, पूरा मामला जुलाई में कूड़ाघाट डाकघर में शैलेंद्र नाम के डाक कर्मी के पकड़े जाने पर सामने आया। जांच में सामने आया था कि शैलेंद्र ने अपने पद का दुरुपयोग कर कूड़ाघाट डाकघर में 10 लाख रुपये की वित्तीय अनियमितता की थी। मामले प्रकाश में आने पर शैलेंद्र को निलंबित कर पूरे मामले की जांच शुरू की गई। सूत्रों ने बताया कि इस दौरान ही शैलेंद्र ने जांच टीम को डाककर्मी शैलेष के बारे में जानकारी दी। सूत्रों ने बताया कि उसने शैलेष का नाम बताने के साथ दो अन्य डाक कर्मियों के नाम भी जांच दल को लिखित में दिया था।

अपने दिए पत्र में उसने बताया कि दोनों डाककर्मी शैलेंद्र के बेहद खास हैं। इसके बाद पूरे मामले की जांच आगे बढ़ी। इसमें विश्वविद्यालय डाकघर व प्रधान डाकघर के दो कर्मियों की वित्तीय अनियमितता सामने आई। पता चला कि प्रधान डाकघर के सिस्टम मैनेजर शैलेश सिंह ने 23 लाख रुपये और विश्वविद्यालय डाकघर के लिपिक वितेश पांडेय ने 22 लाख रुपये का हेरफेर किया था। जांच टीम की रिपोर्ट पर दोनों डाक कर्मियों के निलंबित कर जांच आगे बढ़ा दी। रुपयों के हेरफेर करने में डाक विभाग दोनों आरोपियों पर मुकदमा भी दर्ज करवाएगा।

ये था पूरा मामला, ऐसे किया हेरफेर

आरोपी डाक कर्मियों ने वर्षों से बंद पड़े खातों की लिस्ट बनाई थी। उन सभी खातों में रुपये थे, लेकिन खाते बंद हो गए थे। मतलब सक्रिय नहीं थे। इसके बाद इन खातों से दूसरे फर्जी या डाक कर्मियों ने अपने जानने वाले ग्राहकों के खातों में रुपये भेज दिए। ये सभी नए खाते 2018 से लेकर अभी के बीच हैं।

सूत्रों ने बताया कि शैलेश के पास डाकघर के सभी शाखाओं के जिम्मेदारों की आईडी और पासवर्ड था। मृत पड़े खातों से जीवित खातों में रुपये ट्रांसफर करने के अलावा पेंशन व ब्याज की रकम भी उसी खाते से निकाल ली थी। जांच में सामने आया है कि कई अन्य डाकघरों के कर्मियों ने सूची तैयार करने में मदद की थी। इसके बदले उन्हें भी उनका हिस्सा मिलता था।

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