World

रूस और भारत: यादों में बसे सोवियत की गंध और बारूद के धमाकों में अंतर्द्वंद की दास्तान

विस्तार

दो देशों के बीच मजबूत संबंधों की बुनियाद में सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक मूल्यों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। साहित्य, संस्कृति, कला, किताबों, फिल्मों और नृत्य, संगीत की रचनात्मक दुनिया के मार्फत दो राष्ट्रों के सामाजिक ढांचे के भीतर प्रवाहित होने वाली आत्मीय रिश्तों की बेल हमेशा हरी-भरी रहती है।  इस सुंदर, सुखद और सृजनमयी आदान-प्रदान प्रक्रिया का परिणाम यह होता है कि भौगोलिक, सांस्कृतिक और जीवन दर्शन की बड़ी दूरी के बीच भी वहां के नागरिकों की स्मृति चेतना एक बिंदु पर इतनी समान होती है कि वे अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के परिवर्तनगामी चरित्र के इतर भी एक दूसरे को बेहद आत्मीय और नेह की गर्माहट में पाते हैं।

इस तथ्य को केंद्र में रखें तो रूस और भारत के संबंधों की यात्रा महज चंद दशकों में सिमटा हुआ दो राष्ट्रों के सालाना जलसे का औपचारिक घटनाक्रम नहीं है, बल्कि यह स्मृतियों में प्रवाहित होता समय का वह हिस्सा है जिसे एक नागरिकता बोध, भौगोलिक दूरियों से इतर अपनी स्मृतियों में एक अलग ढंग से समेटे रहता है।

प्रस्तुत लेख के पूर्व इस टीप की प्रासंगिकता रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के केंद्र में है।

एक ऐसे दौर में जबकि दुनिया एक बार फिर से तीसरे महायुद्ध के मुहाने पर बैठी है, यह लेख भारत-रूस  के प्रगाढ़ अंतरसंबंधों की यात्रा को मुड़कर देखता है और वर्तमान में युद्ध की अनिश्चित, असंभावित और विकृत व दुष्चक्र से भरी मानसिकता को भी कटघरे में खड़ा करता है-

अतीत के दृश्यों में खींचा गया यह स्मृति लेख आपको 5 दृश्यों में पहले पीछे लौटाता है और फिर वर्तमान की स्थिति में कई प्रश्नों के साथ छोड़ जाता है- युद्ध की विभत्स परिस्थितियों के बीच यह लेख कई-कई आयामों में कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों को सामने लाता है।

लेख के 5 दृृश्य और उस पर समाप्त होती विवेचना, कूटनीति और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी प्रासंगिक हो उठी है-      

दृश्य एक : कथा सागर

साल 1986। दूरदर्शन पर रात को प्रसारित धारावाहिक “कथा सागर”। विश्व साहित्य से ली गई चुनिंदा कहानियां। इन कहानियों को पर्दे पर उतारने के लिए मेहनत की श्याम बेनेगल, कुन्दन शाह, वेद राही और सत्येन बोस जैसे प्रख्यात निर्देशकों ने। किरदार निभाए थे अशोक कुमार, सत्येन कप्पू, राजेन्द्र गुप्ता, किट्टू गिडवानी, नीना गुप्ता और सुप्रिया पाठक जैसे बेहतरीन कलाकारों ने।

कथा सागर की इन्हीं लहरों में डूबते-उतरते हम लियो टोल्स्टोय, एंतन चेखव और निकोलाई गोगूल जैसे रूसी साहित्यकारों से परिचित हुए। रूसी साहित्य का चस्का लगा। चाहे टोल्स्टोय की ‘Where Love is God is’ हो जिसे ‘ ‘प्रतीक्षा’ नाम से फिल्माया गया या फिर चेखव की वार्ड नंबर 6, जीवन का संदेश देती छोटी कहानियाँ।

दृश्य दो: पुस्तक मेले  

1985 से 1989 के बीच देश के अलग-अलग शहरों में लगने वाले रूसी पुस्तक मेले। उनमें मिलने वाली बहुत उपयोगी पुस्तकें जो बहुत सस्ती भी होती थीं। ये मेले सार्वजनिक स्थलों के साथ ही स्कूलों में भी लगते थे। गणित, विज्ञान और अन्य विषयों की पुस्तकें। साथ ही मिलने वाला रूसी साहित्य, जो हाथ लगे तो फिर छूटे नहीं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button