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Apharan 2 Review: अरुणोदय सिंह की इस बार लार्जर दैन लाइफ वापसी, क्राइम सीरीज में लगा विदेशी तड़का

Movie Review
अपहरण 2
कलाकार
अरुणोदय सिंह , निधि सिंह , सानंद वर्मा , स्नेहिल दीक्षित मेहरा और जीतेंद्र
लेखक
निर्देशक
सिद्धार्थ सेनगुप्ता , उमेश पडलकर , अनाहता मेनन और वरुण बडोला
निर्माता
जियो स्टूडियोज और बालाजी टेलीफिल्म्स
ओटीटी
वूट सेलेक्ट
रेटिंग
2/5
क्राइम वेब सीरीज ‘अपहरण 2’ उन दर्शकों के लिए है जिन्हें क्राइम सीरीज के सारे मसाले देखने का चस्का लग चुका है। सास बहू की कहानियां दिखाती रहीं एकता कपूर का नया दर्शक लुगदी साहित्य पढ़ने वाला दर्शक है जो मनोहर कहानियां और सत्य कथाएं अब परदे पर देखने का आदी  है। गालियां इस तरह की कहानियों में सामान्य हो चुकी है। क्राइम सीरीज का ये नया कॉकटेल बिल्कुल मनमोहन देसाई टाइप ड्रामा है। और, वेब सीरीज ‘अपहरण 2’ में शुरू से आखिर तक मामला अपनी एक खास चाल से चलता दिखता है। चूंकि दबाव एक चर्चित वेब सीरीज का सीक्वेल बनाने का है तो मामला शुरू से थोड़ा लार्जर दैन लाइफ रखने की कोशिश है। बस स्मार्ट टीवी पर इसे देखिएगा संभलकर क्योंकि मामला 18 प्लस वाला है।

अरुणोदय सिंह दमदार अभिनेता है। परदे पर हीरो बनने के लिए वह भी सब कुछ कर चुके हैं। इस बार वह अपनी कहानी खुद सुना रहे हैं। पिछला सीजन देखने वालों को उनकी हरिद्वार की राम कहानी पता है। इस बार कहानी विदेश जा रही है। वजह, एक नामी अपराधी को दबोचना है। सीरीज में अरुणोदय का नाम रुद्र है। रुद्र नाम की एक अलग सीरीज अजय देवगन भी कर रहे हैं। दोनों पुलिसवाले हैं। लेकिन वेब सीरीज ‘अपहरण 2’ का रुद्र अनुराग कश्यप की कहानियों से निकला है। थोक में गालियां देता है। खुद को भी। बीवी उसकी बीते सीजन के आखिर तक आते आते किस जाल में फंस चुकी है, दर्शक देख ही चुके हैं। इस बार दोनों की कहानी थोड़ा और हिंसक है। लेकिन, इस बार का असल मिशन है बीबीएस यानी बिक्रम बहादुर शाह को दबोचना।

ब सीरीज ‘अपहरण 2’ की कहानी 11 एपीसोड तक खिंचती है। खिंचती इसलिए कि शुरू से आखिर तक इसमें एक चर्चित सीरीज का सीक्वेल बनाने का दबाव साफ दिखता है। दूसरा सीजन पहले सीजन से बड़ा दिखना चाहिए तो ड्रोन कैमरा भी खूब उड़ता है। गालियां भी उसी तादाद में दूनी हैं और वो सब भी पहले से दूना है जिसके लिए एकता कपूर की सीरीज ओटीटी पर पहचानी जाती है। बंद दरवाजा भी है। खुली खिड़की भी है। सिर्फ वयस्कों के लिए वाली कहानियों की कंटेंट क्वीन बनती जा रहीं एकता कपूर के नए पीढ़ी वाले दर्शकों के हिसाब से वेब सीरीज ‘अपहरण 2’ फिट है। इसमें वह सब कुछ है, जो आमतौर पर पारिवारिक मनोरंजन वाली कहानियों में नहीं होता। निर्देशक संतोष सिंह ने खुलकर काम किया है और उन दृश्यों से भी परहेज नहीं किया है, जिनकी कहानी में जरूरत नहीं दिखती।

कलाकारों के मामले में ये सीरीज एक बार फिर अरुणोदय सिंह की शोरील जैसी है। अरुणोदय जिस विरासत से आते हैं, उसने उनको हिंदी मनोरंजन जगत में मौके भरपूर दिए हैं, लेकिन कैमरे के सामने विरासत कम और कलाकारी ज्यादा काम आती है। अरुणोदय हर किरदार की तरह रुद्र बनने में भी मेहनत खूब करते हैं। उनकी कमजोरी बस यही है कि अभिनय उनके चेहरे पर सहज रूप से नहीं आता। निधि सिंह का अपना खाका तय है। वह उन्हीं रंगों का और तेवरों का बार बार इस्तेमाल करती हैं, जिनकी उन्हें आदत हो चुकी है। हां, स्नेहिल दीक्षित और सानंद वर्मा अपनी छाप फिर छोड़ जाते हैं। सुखमनी सदाना इस सीजन का सरप्राइज हैं। जीतेंद्र कपूर अरसे बाद कैमरे के सामने आए हैं, लेकिन उनको देखने के चक्कर में ये सीरीज देखना गलत फैसला हो सकता है

तकनीकी रूप से वेब सीरीज ‘अपहरण 2’ ज्यादा प्रभावित नहीं करती। बार बार स्लो मोशन का इस्तेमाल सीरीज को कमजोर करता है। सीरीज की पटकथा भी चुस्त नहीं है। वरुण बडोला जीवन भर सुनी सीखी गालियां इस्तेमाल करके अपने संवादों से सीरीज का टैंपो तो बनाए रखते हैं लेकिन एक हद के बाद ये भी बेहूदी लगने लगती हैं। उन्हें बॉडी शेमिंग और रंगभेद वाले संवादों से परहेज करना चाहिए। नए जमाने में इस तरह के संवाद नई पीढ़ी को भी जमते नहीं हैं। दूसरे सीजन के पहले तीन एपीसोड देखने के लिए बहुत धैर्य की जरूरत है। ये चुनौती अगर आपने पारकर ली तो फिर बाकी के एपीसोड आप फास्ट फॉरवर्ड करके भी देख लें तो खास कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला। पुराने फिल्मी गानों का ऐसा इस्तेमाल एकता कपूर ही सोच सकती हैं।

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